नवगठित सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले का अंतिम और सीमावर्ती विकासखंड बरमकेला इन दिनों जनपद पंचायत की लापरवाह कार्यप्रणाली और शिकायतों को दरकिनार करने के रवैये को लेकर सुर्खियों में है।
पूर्व में रायगढ़ जिले का हिस्सा रहा बरमकेला अब सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले में शामिल है, लेकिन यहां प्रशासनिक कार्यप्रणाली में कोई बदलाव नहीं दिखता। आज भी यहां जनता की शिकायतें कागजों में बंद होकर अलमारियों में धूल फांक रही हैं, जबकि जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार और अनियमितताओं का बोलबाला है।
जंगली अंचलों में कागजों पर ही पूरे हो रहे निर्माण कार्य
बरमकेला जनपद की अधिकांश ग्राम पंचायतें जंगली और दुर्गम क्षेत्रों में स्थित हैं। वहां के निर्माण कार्यों की निगरानी ना के बराबर होती है। ऐसे में कई कार्य सिर्फ कागजों में पूरे दिखा दिए जाते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि जहां निर्माण होता भी है, वहां गुणवत्ता का स्तर बेहद खराब रहता है।
मनरेगा में बन रहे चेक डैम में लापरवाही चरम पर
मनरेगा के अंतर्गत बन रहे चेक डैम निर्माण कार्यों में भी भारी गड़बड़ी सामने आई है। सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार निर्माण एजेंसियां तकनीकी सहायकों से मिलीभगत कर जंगली पत्थरों से अधूरा काम करके ऊपर से कंक्रीट की परत चढ़ा देती हैं, ताकि भ्रष्टाचार को छिपाया जा सके।
शिकायतों का कोई असर नहीं, कार्रवाई शून्य
ग्राम पंचायत बहलीडीह का उदाहरण सामने आया है, जहां वर्ष 2024-25 के दौरान मनरेगा के तहत चेक डैम निर्माण (कार्य क्रमांक: 331300906/WC 111156882240) की शिकायत दिनांक 22 जुलाई 2024 को की गई थी। शिकायत में स्पष्ट रूप से गुणवत्ता हीन कार्य और घोटाले की बात कही गई थी।
शिकायत के एक वर्ष बीत जाने के बावजूद न जांच हुई, न कोई जवाब मिला, और न ही शिकायतकर्ता को किसी प्रकार की जानकारी दी गई।
किसके संरक्षण में फल-फूल रहा भ्रष्टाचार?
बरमकेला क्षेत्र में लगातार शिकायतें होने के बावजूद, न तो तकनीकी सहायक पर कार्रवाई हुई और न ही निर्माण एजेंसियों पर कोई जांच बैठी। स्थानीय ग्रामीणों और शिकायतकर्ताओं का कहना है कि संबंधित अधिकारी मौन धारण किए हुए हैं — क्या यह किसी उच्चस्तरीय संरक्षण का परिणाम है?
“चप्पल घिस गए, जवाब नहीं मिला”
बरमकेला क्षेत्र के अन्य ग्रामों में भी मनरेगा कार्यों की शिकायतें लंबे समय से लंबित हैं। शिकायतकर्ताओं को बार-बार जनपद कार्यालय जाकर अपनी शिकायत दर्ज कराते हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती। “चप्पल घिस गए, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई” — यह ग्रामीणों का सीधा और कटु अनुभव है।
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अब सवाल यह उठता है कि क्या जनपद पंचायत बरमकेला के जिम्मेदार अधिकारी इस खुलासे के बाद भी चुप रहेंगे, या आखिरकार कोई सख्त कार्रवाई होगी?
या यह मुद्दा भी बाकी शिकायतों की तरह ठंडे बस्ते में ही बंद रह जाएगा?
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