स्थान: कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके), भाटापारा
भूमिका: एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन की स्थानीय प्रतिध्वनि
भाटापारा, 23 सितम्बर 2025: आज पूरे देश के साथ-साथ कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके), भाटापारा के परिसर में भी एक ऐतिहासिक आंदोलन की गूँज सुनाई दी। Forum of KVK & AICRP के राष्ट्रव्यापी आह्वान पर, इन्दिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के प्रशासनिक नियंत्रण मे कार्यरत इस केंद्र के समस्त कर्मचारियों ने “कलम बंद हड़ताल” एवं प्रदर्शन कार्यक्रम का आयोजन किया। यह आंदोलन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की भेदभावपूर्ण नीतियों के विरोध में और “वन नेशन, वन केवीके, वन पॉलिसी” की माँग को लेकर किया गया, जो देशभर के गैर-आईसीएआर केवीके कर्मचारियों की लंबे समय से चली आ रही माँग है।
*आंदोलन का स्वरूप: शांतिपूर्ण पर दृढ़ता भरा विरोध*
केवीके भाटापारा के कर्मचारियों ने सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक केंद्र पर ही एकत्रित होकर एक शांतिपूर्ण किंतु दृढ़ विरोध-प्रदर्शन किया। इस दौरान उन्होंने तैयार किए गए बैनर और प्लेकार्ड्स के माध्यम से अपनी माँगों को स्पष्ट रूप से रखा। “हमें चाहिए न्याय”, “वन नेशन-वन केवीके-वन पॉलिसी”, “भेदभाव बंद करो”, “समान कार्य के लिए समान वेतन” जैसे नारों ने पूरे परिसर में गूँज पैदा कर दी। कर्मचारियों ने काले रिबन भी बाँधकर अपना विरोध दर्ज कराया। आंदोलन में वैज्ञानिक, तकनीकी स्टाफ, प्रशासनिक अधिकारी और समर्थक स्टाफ सहित केंद्र के लगभग सभी कर्मचारी शामिल हुए, जिससे उनकी एकजुटता का परिचय मिलता है।
*विरोध के मूल कारण: केवल वेतन नहीं, सम्मान की लड़ाई*
केवीके भाटापारा के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रतिनिधि ने बताया कि यह विरोध केवल वेतन की बात नहीं, बल्कि सम्मान और समान अधिकारों की लड़ाई है। उन्होंने कहा, “हम आईसीएआर के अधीन काम करने वाले अपने सहयोगियों के समान ही जिम्मेदारियाँ निभाते हैं। हम भी किसानों को प्रशिक्षण देते हैं, नई तकनीकों का प्रदर्शन करते हैं, फसल परीक्षण करते हैं और सरकारी योजनाओं को जमीनी स्तर पर लागू करते हैं। लेकिन वेतन, पदोन्नति, भत्तों और सेवानिवृत्ति लाभों में हमें लगातार दोयम दर्जे का व्यवहार झेलना पड़ रहा है। यह अन्यायपूर्ण है और इसे तुरंत समाप्त किया जाना चाहिए।”
*भेदभाव के विशिष्ट आयाम: एक विस्तृत विश्लेषण*
1. *वेतन एवं भत्तों में असमानता:*
– 20 अगस्त 2024 के आईसीएआर के विवादास्पद आदेश को स्थगित किए जाने के बावजूद, गैर-आईसीएआर केवीके कर्मचारियों के पूर्ण भत्ते (जैसे महँगाई भत्ता, यात्रा भत्ता) और पीएफ/एनपीएस योगदान बहाल नहीं किए गए हैं।
– आईसीएआर केवीके के समकक्ष पदों पर कार्यरत कर्मचारियों की तुलना में वेतन में 20-30% तक का अंतर बना हुआ है।
2. *पदोन्नति में रोक:*
– आईसीएआर कर्मचारियों के लिए उपलब्ध कैरियर एडवांसमेंट स्कीम (CAS) गैर-आईसीएआर केवीके के वैज्ञानिकों को उपलब्ध नहीं है।
– तकनीकी और प्रशासनिक स्टाफ के लिए पदोन्नति के अवसर सीमित हैं और अक्सर अनिश्चितकाल तक स्थगित रहते हैं।
3. *सेवानिवृत्ति लाभों का अभाव:*
– गैर-आईसीएआर केवीके कर्मचारी ग्रेच्युटी, पेंशन और एकसमान सेवानिवृत्ति आयु जैसे लाभों से वंचित हैं।
4. *वेतन में विलंब:*
– भाटापारा सहित कई केवीके में कर्मचारियों का वेतन 6-9 महीनों तक अपूर्ण/ लंबित रहता है, जिससे उन्हें आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है।
5. *प्रशासनिक हस्तक्षेप:*
– जब होस्ट संस्थान (इन्दिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय) कर्मचारियों को पदोन्नत करता है, तो आईसीएआर अक्सर वेतन मंजूरी रोक देता है, जिससे प्रशासनिक गतिरोध उत्पन्न होता है।
*संवैधानिक एवं कानूनी पहलू: अधिकारों का हनन*
केवीके भाटापारा के कर्मचारियों का मानना है कि यह भेदभाव संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 38 एवं 39 (सामाजिक और आर्थिक न्याय) का सीधा उल्लंघन है। उन्होंने कहा, “हम एक ही देश के नागरिक हैं, एक ही प्रणाली के तहत काम करते हैं, फिर हमारे साथ यह भेदभाव क्यों?”
*VKSA अभियान और टूटा विश्वास: एक टिपिंग प्वाइंट*
कर्मचारियों ने बताया कि पिछले VKSA (खरीफ) अभियान के दौरान, आईसीएआर ने गैर-आईसीएआर केवीके कर्मचारियों को तीन मुख्य आश्वासन दिए थे:
1. 100 दिनों के भीतर सभी मुद्दों का समाधान।
2. विवादास्पद आदेश की वापसी।
3. महानिदेशक (DG) और उप महानिदेशक (DDG) के साथ बैठक।
लेकिन अब तक इनमें से कोई भी वादा पूरा नहीं हुआ है। आगामी VKSA (रबी) अभियान (3-18 अक्टूबर 2025) को लेकर असंतोष और गहरा गया है।
*सर्वसम्मत निर्णय: VKSA (रबी) के बहिष्कार की चेतावनी*
केवीके भाटापारा के कर्मचारियों ने फोरम ऑफ केवीके एंड एआईसीआरपी की 16-17 सितम्बर की बैठक में लिए गए निर्णय का पूर्ण समर्थन किया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि वेतन समानता, सेवा लाभ और कल्याणकारी मुद्दों का समाधान नहीं हुआ, तो वे आगामी VKSA (रबी) अभियान का पूर्ण बहिष्कार करेंगे। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अब कोई मौखिक या टेलीफोनिक आश्वासन स्वीकार नहीं किया जाएगा। केवल आईसीएआर द्वारा जारी औपचारिक लिखित आदेश ही मान्य होंगे।
*राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य: एक बड़ी तस्वीर*
उल्लेखनीय है कि देश के 91% केवीके आईसीएआर के अलावा राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (जैसे इन्दिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, आदि ), एनजीओ और राज्य सरकारों द्वारा संचालित हैं। फोरम का आरोप है कि आईसीएआर द्वारा गैर-आईसीएआर केवीके के कर्मचारियों के साथ व्यवस्थित भेदभाव किया जा रहा है। यह भेदभाव न केवल अमानवीय है, बल्कि देश की कृषि प्रसार प्रणाली की दक्षता के लिए भी खतरनाक है।
*ऐतिहासिक संदर्भ: केवीके की 50 वर्षों की सेवा यात्रा*
1974 में स्थापना के बाद से कृषि विज्ञान केंद्र भारत की कृषि प्रसार प्रणाली की रीढ़ रहे हैं। उन्होंने वैज्ञानिक शोध को किसानों के खेतों तक पहुँचाने, ग्रामीण युवाओं को प्रशिक्षित करने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में अहम् भूमिका निभाई है। केवीके भाटापारा ने भी पिछले कई दशकों में क्षेत्र के किसानों की आय बढ़ाने और कृषि को लाभप्रद बनाने में योगदान दिया है।
*माँगें और अपेक्षाएँ: एक समग्र समाधान की तलाश*
Forum of KVK & AICRP ने निम्नलिखित माँगें रखी हैं:
1. परोदा उच्च शक्ति समिति की सिफारिशों का तत्काल कार्यान्वयन।
2. सभी केवीके के लिए एकसमान वेतनमान, भत्ते और सेवा शर्तें।
3. पदोन्नति के समान अवसर (CAS सहित)।
4. सेवानिवृत्ति लाभ (ग्रेच्युटी, पेंशन) और एकसमान सेवानिवृत्ति आयु।
5. वेतन और बजट अनुमोदन में देरी को तुरंत दूर करना।
6. आईसीएआर द्वारा होस्ट संस्थानों के प्रशासनिक निर्णयों में अनावश्यक हस्तक्षेप बंद करना।
*भविष्य की रणनीति: आगे की राह*
कर्मचारियों ने स्पष्ट किया कि यदि उनकी माँगों पर शीघ्र ध्यान नहीं दिया गया, तो वे आंदोलन को और तेज करेंगे। इसके तहत सरकारी अधिकारियों से मिलने, धरना-प्रदर्शन, और कानूनी कार्रवाई जैसे कदम शामिल हो सकते हैं। उन्होंने केंद्र सरकार और राज्य सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की अपील की है। केवीके भाटापारा का यह आंदोलन केवल एक स्थानीय घटना नहीं, बल्कि एक राष्ट्रव्यापी संघर्ष की कड़ी है। यह संघर्ष न्याय, समानता और गरिमा के लिए है।

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